Posts

गली की सफाई और प्रतिक्रिया

Image
हम अपने जन सरोकार को कितनी अहमियत देते हैं इसकी एक बानगी देखिये.  मैं प्रतिक्रिया के ऊपर प्रतिक्रिया नहीं देना चाहता बल्कि जैसा हुआ वैसे ही लिख कर आपसे राय चाहता हूँ। बात रविवार (१४ फरवरी २०१६) की है एक पखवाड़ा पहले मैंने यह निश्चय किया था कि मैं अपनी गली की सफाई झाड़ू लगाकर हर दुसरे रविवार को करूँगा। इसके लिए मुझे डंडे वाला झाड़ू चाहिए था। बहुत खोजने पर राजाबाजार में एक दूकान मिली जहाँ आर्डर देकर मैंने एक झाड़ू बनवाया और शुरू हुई सफाई। पहला रविवार: सफाई के पहले  सफाई के पहले  सफाई के बाद  सफाई के बाद  रविवार को मुझे सकारात्मक प्रतिक्रिया मिली। गली के तीन-चार लोगों ने यह देखकर यह कहा कि...बहुत अच्छा कर रहे हैं आप। एक-दो लोग मिले जिन्होंने गली से गुजरते हुए अपनी बाइक धीमी की और कहा कि अच्छा काम कर रहे हैं। दूसरा रविवार: प्रतिक्रिया-1: मेरी गली के श्रीवास्तव जी सब्जी खरीद कर लौट रहे थे उनसे बात होने लगी। थोड़ी ही देर में वे चले गए तब तक एक सज्जन आए। उन्होंने मुझसे पूछा- आप किस संस्था से जुड़े हैं? उनका आशय था
टीवी पर चुनावी बहसों को सुन कर बेहद अफ़सोस होता है.  
यादों के एलबम में कुछ तस्वीरें ऐसी होती हैं जिन्हें देखने के लिए हम बार बार इसे खोलते हैं और निहारना चाहते हैं। पता नहीं क्यूँ, जिन्दगी किसी विशेष कालखंड में रुक जाना चाहती है, थम जाना चाहती है पर समय का कैमरा रुकता नहीं वह अनवरत तस्वीरें खींचता जाता है।
राजनीति का स्वरुप जनता की आवश्यकता एवं मांग के अनुरूप होना चाहिए. दिल्ली में हुए विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को मिली सफलता से यह साफ संकेत मिला था कि जनता एक साफ-सुथरी एवं भ्रष्टाचार मुक्त शासन चाहती है. यह पार्टी अपने चुनावी वादों को कितना पूरा करती है वह दीगर बात है किन्तु यह समझ लेना चाहिए कि राजनितिक पार्टियों से जनता की क्या उम्मीदें हैं. आज विपक्षी पार्टियाँ यह आरोप लगा रही हैं कि आम आदमी पार्टी भी उनसे अलग नहीं है, उसकी कार्यशैली भी उन्हीं की तरह है. यह बहस का विषय हो सकता है परन्तु इससे यह साबित नहीं होता कि इस पार्टी के जिन मुद्दों को जनसमर्थन मिला वह प्रासंगिक नहीं है. यह चुनाव किसी पार्टी की जीत-हार से ज्यादा लोकतंत्र में जनता की मांग को दर्शाता है. पार्टी चाहे कोई भी हो उसे जनता की जरूरतों के अनुरूप अपनी कार्यशैली रखनी चाहिए. 

जमीनी लोकतंत्र की हकीकत

दृश्य १: समय-शाम का धुंधलका; स्थान-बिहार का एक गाँव हाफ पैंट पहने एक व्यक्ति के पास एक अन्य व्यक्ति आता है और उससे इशारों में कुछ कहता है. पहला व्यक्ति उसे अपने हाफ पैंट की एक जेब में से एक पाउच निकाल कर देता है जिसे लेकर दूसरा व्यक्ति दूसरी तरफ चल देता है. आइये मैं बता दूँ, जिस पाउच का यहाँ जिक्र हो रहा है वह है देशी शराब की पाउच और जो व्यक्ति उसे दे रहा है वह पैक्स ( PACS ) चुनाव में अध्यक्ष पद के लिए खड़ा हुए उम्मीदवार का समर्थक है. यह शराब मुफ्त प्रदान की जा रही है जिसके एवज में प्रत्याशी के पक्ष में समर्थन पाने की उम्मीद है. यह बानगी भर है आज के जमीनी स्तर के लोकतंत्र का. सत्ता एवं शक्ति का विकेंद्रीकरण को लक्ष्य में रखकर जिन व्यवस्थावों को जन्म दिया गया वह इस रूप में सामने आएगा, इसे इसके जन्मदाताओं ने शायद सोचा भी न होगा. यह सोच कर हैरानी होती है कि जिन पैक्सों का गठन किसानों को बिचौलियों से बचाने एवं उनकी सहायता के लिए किया गया था, वह आसान धन कमाने का एक जरिया बन चूका है. पिछले कार्यकाल में जो पैक्स अध्यक्ष इस दुधारू गाय को दुह कर अपनी अट्टालिकाएं खड़ी कर चुके
जिंदगी को अपने शर्तों पर जीना आसान नहीं होता. इस कठोर दुनिया में आपके संवेदनाओं को समझने वाले बहुत कम मिलते हैं. वे बहुत भाग्यशाली हैं जिन्हें ऐसे साथी मिले हैं जो उनको अपने सपनों के साथ जीने के लिए संबल प्रदान करते हैं और ठोकर लगने पर उन्हें सहारा प्रदान करते हैं.
हमारा परिवार हमारे समाज की एक इकाई है तथा परिवार को समझ लेने से समाज को समझने में आसानी होती है.